राजस्थान की प्रमुख जनजातियाँ कौनसी है?

 हम जानते हैं कि मनुष्य हजारो वर्ष पहले आदिमानव के रूप में जंगलो में रहता था। तथा शिकार, फल आदि उनके जीवनयापन का तरीका था। जैसे जैसे पृथ्वी का विकास हुआ, तो मानव ने अपनी बुद्धि के बल पर हजारो नए आग से लेकर आधुनिक युग तक के सारे अन्य जीवनयापन के तरीके खोज निकाले है। और जंगलो से पलायन करके करोडो शहर और गाँव बसाए है। 

राजस्थान की जनजातियां

  पर राजस्थान ही नहीं संपूर्ण विश्व में भी अभी भी कई ऐसे समुदाय है, जो अभी भी जंगलो में निवास करते हैं। तथा पारंपरिक तरीको से अपना  जीवनयापन करते हैं। बहुत कम समुदाय  ही आधुनिक सुविधा से थोडे बहुत जुडे हुए हैं। इन समुदायो को ही जनजाति कहते हैं। राजस्थान के प्रमुख जनजाति समुदाय निम्न प्रकार है-

1.भील जनजाति :- भील’ शब्द की उत्पति ‘बील’ से हुई है जिसका अर्थ है ‘ कमान है। कर्नल जेम्स टोड ने भीलों को वनपुत्र कहा था। भील राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति है , जब सिकंदर ने मिनांडर के जरिए भारत पर हमला किया उस दौरान शिवी जनपद / मेवाड़ का शासन भील राजाओं के हाथो में था। भील जनजाति ने मुख्य रूप से दक्षिण राजस्थान पर शासन किया। यह जनजाति बासवाडा, डूंगरपुर, उदयपुर (सर्वाधिक), चित्तौड़गढ़ जिलो में निवास करती है।इस जनजाति के बड़े गाँव को पाल तथा छोटे गाँव को फला कहा जाता है। पाल का नेता मुखिया या ग्रामपति कहलाता है। भील केसरिनाथ के चढ़ी हुई केसर का पानी पीकर कभी झूट नहीं बोलते हैं।ये लोग झूम कृषि भी करते हैं। टोटम à भील जनजाति के लोग टोटम (कुलदेवता) की पूजा करते हैं।

🔯प्रचलित शब्दावली:-

🔰अटक –एक ही पूर्वज से उत्पन्न गौत्रो के भील 

🔰कू –भीलों के घर

🔰टापरा -भीलों के घरों को टापरा भी कहते हैं।

🔰झूमटी (दाजिया)- मैदानी भागों को जलाकर कृषि करना 

🔰चिमाता- पहाडी ढालों पर की जाने वाली कृषि 

🔰गमेती- भीलों के गाँव का मुखिया 

🔰ठेपाडा- भील जनजाति के लोग जो तंग धोती पहनते हैं।

🔰पोत्या- सफेद साफा जो सिर पर पहनते हैं।

🔰पिरिया- विवाह के अवसर पर दुल्हन का पीला लहंगा

🔰सिंदूरी- लाल रंग की साड़ी 

🔰भराड़ी – वैवाहिक अवसर पर लोक देवी का भित्ति चित्रण 

🔰फाइरो -फाइरो भील जनजाति का रणघोष

2.मीणा जनजाति :- मीणा का शाब्दिक अर्थ ‘मछली’ है। मीणा ‘मीन’ धातु से बना है , भील और मीणा जाति के संबंध अच्छे रहे है , किसी समय उत्तर राजस्थान में मीनो का शासन था तो दक्षिण राजस्थान, मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र , गुजरात , उड़ीसा , उत्तरखंड ,बिहार में भीलों का शासन था ।यह राजस्थान की सबसे बड़ी जनजाति हैं। सबसे अधिक मीणा जयपुर (सर्वाधिक), सवाई माधोपुर, उदयपुर, आदि जिलो में निवास करती है। मीणा पुराण के रचियता आचार्य मुनि मगरसागर है। इनकी लोक देवी जीणमाता (रैवासा, सीकर) हैं। इस जनजाति में प्रचलित प्रथा में स्त्री अपने पति, बच्चो को छोड़कर दूसरे पुरुष से विवाह कर लेती है।

मीणा जनजाति

मीणा जनजाति के मुख्यत: दो वर्ग है - प्रथम वर्ग जमीदारो का है तथा द्वितीय वर्ग चौकीदारो का है। मीणा जनजाति 24 खापो में विभाजित है। मीणा जनजाति के बहिभाट को 'जागा' कहा जाता है। मीणा जनजाति में संयुक्त परिवार प्रणाली पाई जाती है। ये लोग मांसाहारी होते है। इनमें राक्षस विवाह, ब्रह्मा विवाह, गांधर्व विवाह आदि करते है, ये लोग दुर्गा माता और शिवजी की भी पूजा करते हैं।

3.गरासिया जनजाति :- गरासिया जनजाति भील जनजाति से संबंधित है ये अपने को चौहान वंशज मानते है ये लोग शिव दुर्गा और भैरव की पूजा करते हैं। सिरोही, गोगुन्दा (उदयपुर), बाली (पाली), जिलो में निवास करते है।इनमे सफेद रंग के पशुओं को पवित्र माना जाता है।

गरासिया जनजाति

🔯प्रचलित शब्दावली:-

🔰सोहरी – अन्नाज भंडारण की कोठी

🔰हूरें – व्यक्ति की मृत्यु होने पर स्मारक बनाते हैं।

🔰सहलोत – मुखिया

🔰मोर बंधिया – विशेष प्रकार का विवाह जिसमे हिन्दुओ की भांति फेरे लिए जाते हैं।

🔰पहराबना विवाह – नाममात्र के फेरे लिए जाते हैं, इस विवाह में ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं पडती है।

🔰ताणना विवाह –इसमें न सगाई के जाती है, न फेरे है। इस विवाह में वर पक्ष वाले कन्या पक्ष वाले को कन्या मूल्य वैवाहिक भेंट के रूप में प्रदान करता है।

4.सहरिया जनजाति:- सहरिया शब्द की उत्पति ‘सहर’ से हुई है जिसका अर्थ जगह होता है। सहरिया जनजाति राज्य की सर्वाधिक पिछड़ी जनजाति होने के कारण भारत सरकार ने राज्य की केवल इसी जनजाति को आदिम जनजाति समूह की सूची में रखा गया है। यह बारां जिले की किशनगंज तथा शाहाबाद तहसीलों में निवास करते है। इनमे वधूमूल्य तथा बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन है।

सहरिया जनजाति

ये लोग काली माता की पूजा करते हैं। ये दुर्गा पूजा विशेष उत्साह के साथ करते हैं। इस जनजाति के लोग जंगलो से कंदमूल एवं शहद एकत्रित कर अपनी जीविका चलाते हैं। ये लोग मदिरा पान भी करते हैं। इसके साथ येे लोग जंगलो से जड़ी-बूटियों को एकत्रत कर विभिन्न प्रकार की दवाएं बनाने में दक्ष होते हैं। ये लोग स्थानांतरित खेती करते हैं। इनकी बस्ती को सहराना कहते हैं।इनके मुखिया को कोतवाल कहते हैं।

5.साँसी जनजाति :- साँसी जनजाति की उत्पति सांसमल नामक व्यक्ति से मानी जाती है। यह भरतपुर जिले में निवास करती है।यह एक खानाबदोश जीवन व्यतीत करने वाली जनजाति है।साँसी जनजाति को दो भागों में विभिक्त है-बीजा और माला।इनमे होली और दिवाली के अवसर पर देवी माता के सम्मुख बकरों की बली दी जाती है। ये लोग वृक्षों की पूजा करते हैं। मांस और शराब इनका प्रिय भोजन है। मांस में ये लोमड़ी और सांड का मांस पसन्द करते हैं।

सांसी जनजाति

 युवक-युवतियों के वैवाहिक संबंध उनके माता-पिता द्वारा किये जाते हैं। विवाह पूर्व यौन संबंध को अत्यन्त गंभीरता से लिया जाता है। इनमें सगाई रस्म अनोखी होती है, जब दो खानाबदोश समूह संयोग से घूमते-घूमते एक स्थान पर मिल जाते हैं, तो सगाई हो जाती है।

6.कंजर जनजाति :- कंजर’ शब्द की उत्पति ‘काननचार’/’कनकचार’ से हुई है जिसका अर्थ है ‘ जंगलो में विचरण करने वाला’। ये झालावाड, बारां, कोटा ओर उदयपुर जिलो में रहते है।कंजर एक अपराध प्रवृति के लिए कुख्यात है। कंजर जनजाति के मुखिया पटेेल कहते हैं। ये अपराध करने से पूर्व इश्वर का आशीर्वाद लेते हैं। उसको पाती माँगना कहा जाता है। ये हाकम राजा क प्याला पीकर कभी झूठ नहीं बोलते हैं।इन लोगो के घरों में भागने के लिए पीछे की तरफ खिडकी होती है परन्तु दरवाजे पर किवाड़ नहीं होते हैं। ये लोग हनुमान और चौथ माता की पूजा करते हैं।

7.डामोर जनजाति :- डामोर भील जनजाति की उपशाखा है । यह बाँसवाड़ा और डूंगरपुर जिले की सीमलवाडा पंचायत समिति में निवास करते है। डामोर जनजाति की पंचायत का मुखिया मुुुुखी कहलाता है। ये लोग बहादुर होते हैं।इस जनजाति के पुरुष भी महिलाओं की तरह आभूषण पहनते है। इनकेे दो मेले झेला बावसी का मेला(पंचमहल गुजरात) व ग्यारसी की रेवाड़ी का मेला(डूंगरपुर) भरतेे हैं। ये जनजाति गुजरात से राजस्थान में आई।

8.कथौडी जनजाति :- यह जनजाति उदयपुर जिले की कोटड़ी तहसील ,बारा जिला और दक्षिणी-पश्चिम राजस्थान में निवास करते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय खेर के वृक्षों से कत्था तैयार करना है।

9.कालबेलिया :- इनका मुख्य व्यवसाय – साँप पकडना है। इस जनजाति के लोग सफेरे होते हैं। ये साँप का खेल दिखाकर अपना पेट भरते हैं।राजस्थान का कालबेलिया नृत्य यूनेस्को की विरासत सूची में (पारंपरिक छाऊ नृत्य) है। इसकी गुलाबो मुख्य नृत्यांगना है।

कालबेलिया जनजाति

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