महाराज गंगासिंह का जीवन परिचय

 राज शूरवीरो की धरती है। इस पर समय समय पर अनेक वीर पैदा हुए हैं। जिन्होंने अपनी जंमभूमि की रक्षा के लिए अब सब कुछ न्यौछावर कर दिया था। आज भी इतिहास के पन्ने इनके शौर्य की कहानियों से भरे पडे है। कुछ वीरो के किरदार पर तो वर्तमान में नाटक, फिल्मे भी बन चुके हैं। ताकि लोग उनका किरदार समझ सके। 

प्राचीन राजस्थान में कई बड़ी रियासते थी। इसी प्रकार जोधपुर से अलग होकर बनी और महाराज बीका द्वारा बसाई गई। रियासत बीकानेर हैं। जो आज भी अपने शौर्य एवं प्रताप के सबुत समेटे हुए हैं। मरूस्थल से घिरा ये क्षेत्र संपूर्ण विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है। बीकानेर में अनेको प्रतापी राजा हुए हैं। आज हम उन मे से एक महाराजा गंगासिह के बारे में विस्तार से जानेगे। तो आइए महाराज गंगासिह का जीवन परिचयशुरू करते हैं।

जन्म :- 3 अक्तूबर 1880 को बीकानेर के महाराजा लाल सिंह की तीसरी संतान के रूप में जन्मे गंगासिंह, डूंगर सिंह के छोटे भाई थे, जो बड़े भाई के देहांत के बाद 1887 ई. में 16 दिसम्बर को बीकानेर के महाराज बने।

Maharaja gangasingh

उन्हें आधुनिक सुधारवादी भविष्यद्रष्टा के रूप में याद किया जाता है। इसके अलावा उन्हे राजस्थान का भागीरथ भी कहा जाता है। पहले महायुद्ध के दौरान ‘ब्रिटिश इम्पीरियल वार केबिनेट’ के अकेले गैर-अँगरेज़ सदस्य थे।सन 1880 से 1943 तक इन्हें 14 से भी ज्यादा कई महत्वपूर्ण सैन्य-सम्मानों के अलावा सन 1900 में ‘केसरेहिंद’ की उपाधि से विभूषित किया गया। 1928 में इन्हें पहली बार 19 तोपों की सलामी दी गयी, वहीं 1921 में दो साल बाद इन्हें अंग्रेज़ी शासन द्वारा स्थाई तौर 19 तोपों की सलामी योग्य शासक माना गया।

शिक्षा एवं विवाह:- उनकी प्रारंभिक शिक्षा पहले घर ही में, फिर बाद में अजमेर के मेयो कॉलेज में 1889 से 1894 के बीच हुई। ठाकुर लालसिंह के मार्गदर्शन में 1895 से 1898 के बीच इन्हें प्रशासनिक प्रशिक्षण मिला। १८९८ में गंगा सिंह फ़ौजी-प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए देवली रेजिमेंट भेजे गए जो तब ले.कर्नल बैल के अधीन देश की सर्वोत्तम मिलिट्री प्रशिक्षण रेजिमेंट मानी जाती थी।

इनका पहला विवाह प्रतापगढ़ राज्य की बेटी वल्लभ कुंवर से 1997 में, और दूसरा विवाह बीकमकोर की राजकन्या भटियानी जी से हुआ जिनसे इनके दो पुत्रियाँ और चार पुत्र हुए|

कार्यक्षेत्र:- पहले विश्वयुद्ध में एक फ़ौजी अफसर के बतौर गंगासिंह ने अंग्रेजों की तरफ से ‘बीकानेर कैमल कार्प्स’ के प्रधान के रूप में फिलिस्तीन, मिश्र और फ़्रांस के युद्धों में सक्रिय हिस्सा लिया। 1902 में ये प्रिंस ऑफ़ वेल्स के और 1920 में किंग जॉर्ज पंचम के ए डी सी भी रहे।

महायुद्ध-समाप्ति के बाद अपनी पुश्तैनी बीकानेर रियासत में लौट कर उन्होंने प्रशासनिक सुधारों और विकास की गंगा बहाने के लिए जो-जो काम किये वे किसी भी लिहाज़ से साधारण नहीं कहे जा सकते|1923 में उन्होंने एक चुनी हुई जन-प्रतिनिधि सभा का गठन किया, 1922 में एक मुख्य न्यायाधीश के अधीन अन्य दो न्यायाधीशों का एक उच्च-न्यायालय स्थापित किया और बीकानेर को न्यायिक-सेवा के क्षेत्र में अपनी ऐसी पहल से देश की पहली रियासत बनाया। अपनी सरकार के कर्मचारियों के लिए उन्होंने ‘एंडोमेंट एश्योरेंस स्कीम’ और जीवन-बीमा योजना लागू की, निजी बेंकों की सेवाएं आम नागरिकों को भी मुहैय्या करवाईं, और पूरे राज्य में बाल-विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट कड़ाई से लागू किया। 1927 में ये ‘सेन्ट्रल रिक्रूटिंग बोर्ड ऑफ़ इण्डिया’ के सदस्य नामांकित हुए और इसी वर्ष उन्होंने ‘इम्पीरियल वार कांफ्रेंस’ में, 1929 में ‘पेरिस शांति सम्मलेन’ में और ‘इम्पीरियल वार केबिनेट’ में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1920 से 1926 के बीच गंगा सिंह ‘इन्डियन चेंबर ऑफ़ प्रिन्सेज़’ के चांसलर बनाये गए। इस बीच 1924 में ‘लीग ऑफ़ नेशंस’ के पांचवें अधिवेशन में भी इन्होंने भारतीय प्रतिनिधि की हैसियत से हिस्सा लिया।

उपलब्धियाँ:- वर्ष 1899-1900 में राजस्थान में एक बदनाम अकाल पड़ा था। विक्रम संवत 1956 में ये अकाल पड़ने के कारण राजस्थान में इसे छप्पनिया-काळ कहा जाता है। एक अनुमान के मुताबिक इस अकाल से राजस्थान में लगभग पौने-दो करोड़ लोगों की मृत्यु हो गयी थी।पशु पक्षियों की तो कोई गिनती नहीं है। लोगों ने खेजड़ी के वृक्ष की छाल खा-खा के इस अकाल में जीवनयापन किया था। यही कारण है कि राजस्थान के लोग अपनी बहियों (मारवाड़ी अथवा महाजनी बही-खातों) में पृष्ठ संख्या 56 को रिक्त छोड़ते हैं।छप्पनिया-काळ की विभीषिका व तबाही के कारण राजस्थान में 56 की संख्या अशुभ मानी है।

इस दौर में बीकानेर रियासत के यशस्वी महाराजा थे। गंगासिंह जी राठौड़(बीका राठौड़ अथवा बीकानेर रियासत के संस्थापक राव बीका के वंशज) अपने राज्य की प्रजा को अन्न व जल से तड़प-तड़प के मरता देख गंगासिंह जी का हृदय द्रवित हो उठा।गंगासिंह जी ने सोचा क्यों ना बीकानेर से पँजाब तक नहर बनवा के सतलुज से रेगिस्तान में पानी लाया जाए ताकि मेरी प्रजा को किसानों को अकाल से राहत मिले।नहर निर्माण के लिए गंगासिंह जी ने एक अंग्रेज इंजीनियर आर जी कनेडी (पँजाब के तत्कालीन चीफ इंजीनियर) ने वर्ष 1906 में इस सतलुज-वैली प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार की,लेकिन बीकानेर से पँजाब व बीच की देशी रियासतों ने अपने हिस्से का जल व नहर के लिए जमीन देने से मना कर दिया। नहर निर्माण में रही-सही कसर कानूनी अड़चनें डाल के अंग्रेजों ने पूरी कर दी।महाराजा गंगासिंह जी ने परिस्थितियों से हार नहीं मानी और इस नहर निर्माण के लिए अंग्रेजों से एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती भी। बहावलपुर (वर्तमान पाकिस्तान) रियासत ने तो अपने हिस्से का पानी व अपनी ज़मीन देने से एकदम मना कर दिया।

महाराजा गंगासिंह जी ने जब कानूनी लड़ाई जीती तो वर्ष 1912 में पँजाब के तत्कालीन गवर्नर सर डैंजिल इबटसन की पहल पर दुबारा कैनाल योजना बनी। लेकिन किस्मत एक वार फिर दगा दे गई। इसी दरमियान प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था। 4 सितम्बर 1920 को बीकानेर बहावलपुर व पँजाब रियासतों में ऐतिहासिक सतलुज घाटी प्रोजेक्ट समझौता हुआ।महाराजा गंगासिंह जी ने 1921 में गंगनहर की नींव रखी। 26 अक्टूम्बर 1927 को गंगनहर का निर्माण पूरा हुआ। हुसैनवाला से शिवपुरी तक 129 किलोमीटर लंबी ये उस वक़्त दुनियाँ की सबसे लंबी नहर थी। गंगनहर के निर्माण में उस वक़्त कुल 8 करोड़ रुपये खर्च हुए। गंगनहर से वर्तमान में 30 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।

श्रीगंगानगर शहर के विकास को भी उन्होंने प्राथमिकता दी वहां कई निर्माण करवाए और बीकानेर में अपने निवास के लिए पिता लालसिंह के नाम से ‘लालगढ़ पैलेस’ बनवाया| बीकानेर को जोधपुर शहर से जोड़ते हुए रेलवे के विकास और बिजली लाने की दिशा में भी ये बहुत सक्रिय रहे। जेल और भूमि-सुधारों की दिशा में इन्होंने नए कायदे कानून लागू करवाए, नगरपालिकाओं के स्वायत्त शासन सम्बन्धी चुनावों की प्रक्रिया शुरू की, और राजसी सलाह-मशविरे के लिए एक मंत्रिमंडल का गठन भी किया। 1933 में लोक देवता रामदेवजी की समाधि पर एक पक्के मंदिर के निर्माण का श्रेय भी इन्हें है!

आलोचना:- इन सब चीज़ों के बावजूद कुछ लोग उन्हें एक निहायत अलोकतांत्रिक, घोर सुधार-विरोधी, शिक्षा-आंदोलनों को कुचलने वाले, अप्रतिम जातिवादी, जनता पर तरह-तरह के ढेरों टेक्स लगाने वाले अंगरेज़ परस्त और बीकानेर राज्य से आर्य समाज और प्रजा परिषद् के सदस्यों को देश निकाला देने वाले, गुस्सैल शासक गंगासिंह के रूप में भी याद करते हैं। जनरल गंगासिंह के पक्ष में जितनी बातें स्थानीय इतिहास में लिखी मिलती हैं- उतनी ही उनके विपक्ष में भी| बीकानेर में स्वाधीनता-सेनानियों, कांग्रेस से जुड़े पुराने नेताओं और प्रजामंडल जैसे आन्दोलनों को कुचलने वाले इस असाधारण राजा के बारे में खुली निंदा से भरे इतिहास के पृष्ठ भी लिखे गए हैं! उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी कुछ लोमहर्षक कहानियां आज भी बीकानेर के पुराने लोगों को याद हैं। ये बात निर्विवाद है कि उन जैसा विवादास्पद राजा बीकानेर में आज तक नहीं हुआ।

2 फरवरी 1943 को बंबई में 62 साल की उम्र में आधुनिक बीकानेर के निर्माता जनरल गंगासिंह का निधन हुआ।

आशा करता हूँ कि ये Airtical आपको पसंद आया होगा। अगर कोई तथ्य और जानकारी बीकानेर महाराज गंगासिह के बारे में शेष रह गई हो ,तो comment box में अपनी राय रखकर बताए। 

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